सवा- सोमा

  • 29 Aug 2020
  • Posted By : Jainism Courses

सवा- सोमा

सौराष्ट्र के सवचंद सेठ का व्यापार पूरे वेग से चल रहा था जमीन पर हजारों टाँड़े ( व्यापार की वस्तुओं से लदे हुए पशुओं के झुंड ) चलते और समुद्र पर माल से लदे हुए जहाज चलते दिल्ली , आग्रा और अहमदाबाद के बाजारों में उनकी प्रतिष्ठा इतनी ऊँची थी कि सवचंद सेठ की हुंडी कही से भी वापस लौटती नहीं

सागर में ज्वार-भाटा आता है , उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी उत्थान-पतन आता है एक समय समुद्री मार्ग से गये हुए सवचंद सेठ के सारे के सारे जहाज सागर में लापता हो गये एक-एक जहाज में लाखों का बहुमूल्य माल भरा था दिन पर दिन बीत रहे थे , पर जहाजों के बेड़े की कोई खोज-खबर मिलती नहीं थी अवश्य ही रत्नाकर - सागर उसे निगल गया होगा !

देखते ही देखते सवचंद सेठ धन से बिल्कुल खाली हो गये घर में रत्तीभर की बाली ( कान की ) तक दे डाली , पर जहाँ आसमान ही सिर पर टूट पड़ा हो वहाँ क्या हो सकता था

पड़ोस के गाँव के ठाकुर की राशि सेठ के पास थी उसने आकर उगाही का तकाजा शुरु किया सवचंद सेठ ने परिश्रम करके थोड़ी-बहुत रकम प्राप्त करना चाहा , पर सफल नहीं हुए दुनिया में गिरते को गिरानेवाले लाख मनुष्य होते हैं , पर गिरे हुए को उठानेवाला तो कोई बिरला ही होता है सेठ ने उगाही या वसूली प्राप्त करने या उधार लेने का प्रयास किया , पर खाली हाथों वापस आना पड़ा ! अंत में नरसिंह मेहता ने शामलशा सेठ पर लिखी थी वैसी हुंडी वणथली के सेठ सवचंद जेराज ने अहमदाबाद के सेठ सोमचंद अमीचंद पर लिखी और लिखा कि चिट्ठी लेकर आनेवाले ठाकोर सूरजमलजी सतावत हुंडी दिखाये तब एक लाख रुपये नगद दीजिए

सवचंद सेठ को सोमचंद सेठ के साथ कोई जान-पहचान नहीं थी या पैसो का कोई लेन-देन कभी नहीं हुआ था यह लाख की हुंडी कैसे स्वीकार होगी इस सोच में सेठ की आँखों से दो बूँद आँसू कागज पर टपक पड़े खैर ! दूसरा कर भी क्या सकते थे ? प्रभु का नाम लेकर हुंडी ठाकोर के हाथ में रखी अहमदाबाद के झवेरीवाड़ में धनाढ्य सोमचंद सेठ रहते थे सोमचंद सेठ ने हुंडी पढ़ी उन्होंने सवचंद सेठ का खाता याद किया , पर कुछ याद आया मुनीम को जाँच करने को कहा मुनीम ने बहियाँ उलट-फेर की , पर कहीं भी इस नाम का अता-पता मिला सोमचंद सेठ ने ठाकोर से कहा कि हमारे यहाँ बड़ी रकम की हुंडी तीन दिन में स्वीकृत होती है , इसलिए तीन दिन तक तुम हमारे अतिथि बन कर रहो सोमचंद सेठ का वैभव देखकर चकित हुए ठाकोर तीन दिन तक रुके सेठ ने पुनः फुरसत से बहियाँ देखी उनमें सवचंद सेठ का कोई खाता मिला नहीं फिर से हुंडी मँगवाकर ध्यान से देखा तो उनकी दृष्टि हुंडी पर गिरे हुए दो बिंदुओं पर गई यकीनन , किसी प्रतिष्ठित पुरुष के ये आँसू लगते है ! उसने मेरे भरोसे हुंडी लिखी लगती है अपने सधर्मी के लिए लक्ष्मी का उपयोग करने का सुनहरा अवसर सामने चलकर प्राप्त हुआ है ! मानव मानव के काम आये , तो मानवदेह मिली या मिली सब समान ही है सेठ ने मुनिम से कहा कि ठाकोर को लाख रुपये चुका दो मुनिम ने कहा कि सवचंद सेठ का खाता नहीं है , तो लाख रुपये किस खातें में लिखकर दूँ ? सेठ ने कहा कि खर्च के खाते में लिखकर दो

अंधकार में से सुवर्ण का सूरज प्रगट हो , त्यों सवचंद सेठ के सारे के सारे जहाज वापस लौट आये ठाकोर को लेकर वणथली के सवचंद सेठ अहमदाबाद में सोमचंद सेठ के वहाँ आये सेठ अपनी सराफ की दुकान पर बैठे थे सवचंद सेठ ने दौड़कर अपनी पगड़ी उनकी गोद में रखते हुए कहा , " सेठजी ! मुझ मरते हुए को आपने जीवनदान दिया आपने मेरी प्रतिष्ठा रखी मेरी चमड़ी से आपके जूते सिलवाऊँ तो भी कम है अपनी रकम ले लीजिए "

सवचंद सेठ ने थेलियाँ उतारना शुरु किया तीन लाख रुपये रखें सोमचंद सेठ ने कहा , " हमने तो लाख दिये थे , सूद ले तो भी सवा लाख हों " बात ने विवाद का मोड़ लिया सोमचंद सेठ और सवचंद सेठ दोनों में से एक भी माने नहीं गाँव का महाजन एकत्र हुआ यह निश्चित हुआ कि इस संपत्ति से संघ निकाला जाये प्रेम -भाव से तीर्थयात्रा की जाये मार्ग में दान देना , दुःखियों के दुःख दूर करना पूरा संघ निकला और श्री शत्रुंजय तीर्थ पर पहुँचे वहाँ जाकर बाकी की धनराशि से देरासर बँधवाये आज भी सवा-सोमा के शिखर के जिनालयों को देखकर अंतर बोल उठता है :

" धन्य है सवा -सोमा को दुनिया में रख-रखाव हो तो ऐसा हो मानवता हो तो ऐसी हो लक्ष्मी प्राप्त हो तो ऐसों को प्राप्त हो "

साभार : जिनशासन की कीर्तिगाथा